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लक्ष्‍य का 'विजवलाइजेशन' ले जाएगा शून्‍य से शिखर तक

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हम सभी जीवन में कुछ इच्‍छाएं रखते हैं ,  सपने देखते हैं और लक्ष्‍य बनाते हैं लेकिन कुछ ही होते हैं जो वास्‍तव में अपने लक्ष्‍यों को हासिल कर पाते हैं। जानते हैं ऐसा क्‍यों होता है   क्‍योंकि हम कभी अपने लक्ष्‍यों को विजवलाइज ही नहीं कर पाते ,   दिमाग में लक्ष्‍य बनाते जरूर हैं लेकिन उन्‍हें कागज पर नहीं उतार पाते और मूर्त रूप लेने की तो बाद ही दूर है ,  आज मैं आपको लक्ष्‍यों को लेकर फोकस होने के कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों से अवगत कराऊंगा ,  जिसे अपनाकर आप जीवन को शून्‍य से शिखर तक ले जा सकते हैं। दुनिया के 85 प्रतिशत लोग लक्ष्‍यविहीन जीवन जीते हैं , 10  प्रतिशत अपने लक्ष्‍यों को दिमाग में ही रखते हैं और महज 5 प्रतिशत लोग इन्‍हें कागज पर उतारकर इन्‍हें पाने में जुटते हैं और सफलता हासिल करते हैं।   जानते हैं ऐसा क्‍यों होता है क्‍योंकि ऐसे लोग अपने लक्ष्‍यों को विजवलाइज कर पाते हैं।   जो लोग अपने लक्ष्‍यों को विजवलाइज नहीं कर पाते वे उन्‍हें हासिल भी नहीं कर पाते   क्‍योंकि बिना पता लिखी चिट्ठी और बिना पतवार की नांव कहीं नहीं जाती ,   वह मझदार में ही गोते खाती है। मैं आपको उदाहरण के साथ

दिमाग का सॉफ्टवेयर बदलने से मिलेगी 'सच्‍ची खुशी'

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हम सभी अपने जीवन में सुख पाना चाहते हैं , जीवन की भागदौड़ के बीच अपने सपनों की चाहत को सुख मानकर उनके पीछे भागते हैं। लोगों को लगता है कि उनके सपने पूरे होने की अनुभूति ही सच्‍चा सुख है लेकिन यह गलत है , बल्कि यह उस प्रकार है जैसे मृग कस्‍तूरी की खूशबू के पीछे सारी जिंदगी भागता है लेकिन वह कस्‍तूरी उसी के अंदर होती है। इसी तरह खुशियां हमारे अंदर हैं लेकिन हमारे दिमाग में जो सॉफ्टवेयर है वह हमें हमारी उपलब्धियों , सकारात्‍मकताओं और हासिल चीजों की जगह वह दृश्‍य दिखाता है जो हम हासिल नहीं कर पाए , फिर हम दुखी होते हैं और सुख की तलाश में भागने लगते हैं। ऐसे में हम दिमाग का सॉफ्टवेयर बदलकर सच्‍ची खुशी हासिल कर सकते हैं। हम कई बार सोचते हैं कि हमें अपनी ड्रीम वाइफ – ड्रीम हस्‍बेंड , ड्रीम जॉब , ड्रीम डिग्री , ड्रीम कार , ड्रीम मोबाइल या अन्‍य संसाधन चाहिए तब हम सच्‍ची खुशी हासिल करेंगे लेकिन अपनी लाइफ को फ्लैशबैक करके देखेंगे तो पता चलेगा कि इनमें से कई चीजें हासिल करने के बाद क्‍या हमें सच्‍ची खुशी मिल गई , अधिकांश का जबाव होगा नहीं ,   क्‍योंकि जब तक हम किसी चीज को पाना चाहते हैं तब तक व

अपने मन के बगीचे में बोईये आशाओं के बीज

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आपने अक्‍सर महसूस किया होगा कि आपके मन में बुरे विचार आ रहे हैं , बार-बार मन किसी अनचाहे दृश्‍यों को हमारी आंखों के सामने ला रहा है। कभी मन स्‍वयं से ग्‍लानि‍ करा रहा है तो कभी हमारे अपनों से संघर्ष के लिए हमें प्रेरित कर रहा है… जानते हैं ऐसा क्‍यों होता है क्‍योंकि किसी दुखद घटना , अधूरी इच्‍छा या अपेक्षा पूरी नहीं होने के कारण हम अनजाने में अपने मन में नकारात्‍मकता के बीज डाल देते हैं। अगर समय पर इन बीजों से उत्‍पन्‍न खरपतवार को नहीं हटाया जाए तो हमारे जीवन में खुशियों के फूल नहीं खिल पाते। सब कुछ होने के बाद भी हमारा मन  विचारों से  जूझता रहता है। इससे बाहर निकलने के लिए अपने मन के बगीचे में आशाओं के बीच बोईये , आशाओं की फूलवारी से आपके विचार सकारात्‍मक होंगे और आपका मन आपको सही दिशा में आगे बढ़ाने लगेगा। हमारा मन किसी खाली जमीन की तरह होता है , इसमें हम जिस तरह के बीज लगाएंगे हमें उसकी तरह का पेड़ मिलेगा। हमारी अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे किसी व्‍यक्ति , अपने ही परिवार या किसी दोस्‍तों से नाराजगी को जब हम बार - बार सोचने लगते हैं तो मन में नकारात्‍मकता के बीच पड़ जाते हैं और मन की

आपका सहारा छिन गया तो दूसरों का सहारा बनिए

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मौजूदा समय आपदा का समय है , कहीं मानवता के कराहने की तो कहीं अपनों को खोने की चित्‍कार है। इस  महा मारी  ने किसी के घर का चिराग बुझा दिया तो किसी के सिर से आसरा छीन लिया। अपनों को खोकर लोगों की जिंदगी ठहर सी गई है , जिसके जीने का सहारा चला गया हो उसका दिल बार-बार यही कहता रहता है कि मुझे छोड़कर तुम कहां चले गए … ऐसे में किसी को जिंदगी में कोई रास्‍ता नजर नहीं आता , जो हमें छोड़कर चला गया वो तो वापस नहीं आ सकता लेकिन उसकी अधूरी ख्‍वाहिश , छूटे हुए काम और उसकी स्‍मृति में प्रयासों के कुछ कदम बढ़ाकर हम उसे याद कर सकते हैं। अगर आपका सहारा छीन गया है तो दूसरों का सहारा बनिए। यही उसके प्रति हमारी सच्‍ची श्रद्धांजलि होगी। जिससे हमें उसके होने का अहसास भी हो और जिंदगी को सूकुन भी मिल सके। यह सही है कि मुरझाए हुए फूल बहारों के आने पर भी नहीं खिल सकते और बिछड़े हुए व्‍यक्ति की कमी हजारों लोग मिलकर भी पूरी नहीं कर सकते। हर समय जाने वाले की यादों के कांटे हमारे दिल में चुभते हैं । न दर्द ठहरता है , न आंसू रूकते हैं और न ही दिल इस बात को मानने को तैयार होता है कि अब वो हमारे बीच नहीं है ल

आत्‍मा से परमात्‍मा के संवाद का माध्‍यम है ''प्रार्थना''

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जब भी हमारे सामने कोई विकट स्थिति आ जाती है तो हर तरफ बंद रास्‍तों के बीच एक ही मार्ग नजर आता है वह है प्रार्थना। असल में प्रार्थना आत्‍मा से परमात्‍मा के संवाद का माध्‍यम है। यह जरूरी नहीं कि हम किसी विशेष स्‍थान , समय या भाषा में ही प्रार्थना करें , प्रार्थना तो समय , स्‍थान और भाषा की सीमाओं से परे है। केवल सच्‍चे भाव से आत्‍मा से निकली भावनाएं सीधे परमात्‍मा से संवाद कर लेती हैं। जीवन में अगर कोई भी मुश्किल आ जाए तो परेशान न हों क्‍योंकि ईश्‍वर की शक्ति हमारी हर मुश्किल से बड़ी है और ईश्‍वर की शक्ति का आशीष हम प्रार्थना से ही प्राप्‍त कर सकते हैं। प्रार्थना कोई कार्य नहीं बल्कि एक गुण है जो आत्‍मा से उत्‍पन्‍न होता है। अपने मन की भावनाओं से ईश्‍वर को अवगत करना प्रार्थना का पहला चरण है , इसके बाद हम अपनी सारी आशंकाएं , सारी चिंताएं , सारी योजनाएं , सारे संकल्‍प और विकल्‍प ईश्‍वर के चरणों में समर्पित कर देते हैं। किसी कार्य को लेकर अपनी पूरी योजना ईश्‍वर के समक्ष रख हम चिंतामुक्‍त होकर कर्म में लीन हो सकते हैं। उस परमात्‍मा को मालूम है कि हमारे संकल्‍प का श्रेष्‍ठ फल क्‍या है।