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*दिखावे को छोड़, सामना करें असलियत का*

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आप जानते ही होंगे कि इंसान की उत्पत्ति बंदरों से हुई है। याने बंदर के कई फीचर्स इंसानों में आये हैं। वह शारीरिक बनावट हो या खाने के तरीके। धीरे-धीरे इंसान सभ्य समाज में अपने तौर-तरीकों को बेहतर करता गया लेकिन एक आदत अब भी इंसानों ने नहीं छोड़ी वह है नक़ल करने की। आपने बचपन में शायद नकलची बंदर की कहानी भी पढ़ी होगी। बंदरों में सबसे खास आदत होती है नकल करने की और उसी आदत को इंसान भी बखूबी निभा रहा है। आज के दौर में अगर हम देखें तो एक दूसरे की होड़ में हम खुद की वास्तविकता को भूलकर नकल के दिखावे में अपनी जिंदगी जी रहे हैं। मतलब अगर किसी ने बड़ी गाड़ी खरीदी तो हमें उसकी नकल करना है, किसी ने बड़ा घर बनाया तो हमें उसकी नकल करना है, कोई समाज में ज्यादा पैसे खर्चा करता है तो हमें उसकी नकल करना है, कोई ऐशो आराम का दिखावा करता है तो हमें उसकी नकल करना है। बस इसी तरह हम अपनी वास्तविक जिंदगी और अपने मूल विचारों को छोड़कर एक दिखावे के आवरण को ओढ़े हुए हैं।  कभी हम समाज में दिखावे के लिए ऐसा करते हैं तो कभी खुद को समाज के सामने पेश करने के लिए दिखावे का चोला ओढ़ लेते हैं। वास्‍तव में अगर आपको जीवन में क

डिप्रेशन को दूर भगाएगा आपका डिफेंस मैकेनिज्म

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चलिए आज कुछ अलग ढंग से शुरूआत करते हैं , सोचिए कि आप एक घने जंगल में हैं , आप रास्ता भटक चुके हैं , अचानक शेर सामने आ जाता है। तो आप क्या करेंगे ... आखें बंद करके कल्पना कीजिए और सोचिए। कुछ लोग कहेंगे कि हम भागेंगे , कुछ कहेंगे की बचने का प्रयास करेंगे और कुछ यह भी कह सकते हैं कि जो करना है शेर ही करेगा लेकिन शेर से बचने का सबसे अच्छा तरीका मैं आपको बताता हूं , वह है कि सोचना बंद कर दीजिए ... जी हां , बस इस कल्पना को खत्म कर दीजिए। ऐसा ही होता है हमारे जीवन में ... हम कभी बुरी कल्पनाओं तो कभी बीते समय की यादों , कभी भविष्य के खतरे तो कभी आसपास की नकारात्मकता के बारे में मन में ऐसी धारणाएं बना लेते हैं कि उनमें उलझते ही चले जाते हैं और टेंशन ,  एंग्जायटी  से होते हुए डिप्रेशन तक पहुंच जाते हैं लेकिन अगर आप इससे बचना चाहते हैं तो आपको अपने आसपास एक डिफेंस मैकेनिज्म बनाना होगा। जैसे कोरोना से बचाव के लिए हमारी इम्यूनिटी काम करती