ऐसे करें अपने ‘जीवन के पर्यावरण’ का संरक्षण
आज विश्व पर्यावरण दिवस है, ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण के क्षरण, पेड़ों की कटाई और खेतों में हो रहे कीटनाशक के प्रयोगों के बीच इस प्रकृति को संरक्षित करने की महती की जिम्मेदारी हमारी है। लेकिन इसके बीच क्या आप एक बात जानते हैं कि हमारे जीवन का भी एक पर्यावरण होता है जिसे भी संरक्षित करना बहुत जरूरी है। अब आपको लग रहा होगा कि ‘जीवन का पर्यावरण’ अब भला यह क्या बला है। मैं बताता हूं, असली में हमारा जीवन अपने आप में एक प्रकृति है, जिसे हम अपना नेचर कहते हैं। इसमें जो हमारे विचार हैं, वह है हमारे जीवन का पर्यावरण यानी की इनवायरमेंट। यही हमारे जीवन की दशा और दिशा को तय करता है। अब हम चाहें तो इसे उजाड़ रेगिस्तान बना सकते हैं और हम चाहें तो इसमें फूल खिला सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि आपको कैसे संभालना है आपके जीवन के पर्यावरण को।
हमारा मन किसी खाली जमीन की तरह होता है, इसमें हम जिस तरह के बीज डालते हैं, भविष्य में हमें उसी तरह के पेड़ मिलते हैं, जिसमें फूल, फल या कांटे भी हो सकते हैं। हमारी अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे किसी व्यक्ति, अपने ही परिवार या दोस्तों से नाराजगी या हमारी पसंद के अनुरूप किसी काम के नहीं होने पर हम बार-बार उसी बात को सोचने लगते हैं। बस इसके साथ ही हमारे जीवन में पड़ जाते हैं नकारात्मकता के बीज। आपको एक बात जानकर हैरानी होगी कि हमारे मन की जमीन बहुत उपजाउ है लेकिन यह अच्छे और बुरे बीजों में अंतर नहीं करती। इसमें जो बीच डलता है यह उस बीज से पौधा और पौधे से पेड़ बनाने में देर नहीं करती। एक भी गलत बीज हमारे रिश्तों में कड़वाहट ला सकता है और हमारे मन को अस्थिर कर सकता है। कई बार जाने-अनजानें में हम अपने जीवन को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए हरे-भरे पेड़ों की तरह खिले हुए रिश्तों को काट देते हैं लेकिन जब जीवन में ऑक्सिजन की जरूरत होती है तो हमें उन्हीं पेड़ों (रिश्तों) की कमी खलती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि हमारे जीवन में ऐसा होता क्यों है, असल में जब हम किसी से नाराज होते हैं, आत्मग्लानि में होते हैं या अपने मनचाहे काम को नहीं कर पाते हैं तो हमारी इच्छा होती है कि हम यह सब बातें संबंधित व्यक्ति को बोल दें लेकिन क्या सही है इस पर चर्चा की जगह हम कौन सही है कि चर्चा कर बात को बढ़ा लेते हैं और यह डिस्कशन कभी पूरा नहीं हो पाता। ऐसे में हमारा मन बुरे विचारों से घिरने लगता है और बार-बार हमारे सामने अनचाहे दृश्यों सामने लाने लगता है। समय पर बातों को स्पष्ट नहीं करने और बातों को मन में दबा देने के कारण इन बीजों से उत्पन्न होती खरपतवार हमारे जीवन में खुशियों के फूल नहीं खिलने देती।
मन को जरूरत है आशाओं के बीजों की
1. जीवन में फूलवारी खिलाने के लिए हमारे मन में आशाओं के बीजों को बोने की जरूरत होती है।
2. सबसे पहले अपने जीवन और मौजूदा परिस्थिति के दुख, डर और अधूरी ख्वाहिशों को कागज पर लिख लें।
3. अगर आप बातों को लेकर स्पष्ट नहीं हैं तो पहचान के किसी जानकार व्यक्ति या काउंसलर का सहारा ले सकते हैं।
4. इस संवाद से आप जानेंगे कि आपके मन में उत्पन्न अधिकांश भावनाएं आधारहीन थीं, जिनका आपके वर्तमान जीवन से कोई संबंध ही नहीं है।
5. अगर किसी से गलती हो गई है तो उसे माफ कर दीजिए, कुछ बातें क्लीयर कर लीजिए और जिन हालातों पर आपका बस नहीं उन्हें सोचना छोड़ दीजिए।
6. महत्वपूर्ण बात याद रखिए जीवन में बातें जितनी क्लीयर होंगी, जीवन की दिशा और भविष्य का विजन उतना क्लीयर होगा।
7. नकारात्मक भावनाएं बिलकुल उस खाली कमरे की तरह हैं जहां अंधेरे के कारण डर लग रहा हो, जैसे ही आप सकारात्मकता का प्रकाश करेंगे, डर गायब हो जाएगा।
8. जब भी समय मिले स्वयं से संवाद करें, जब आप अपने मन में उत्पन्न प्रश्नों के उत्तर देने लगेंगे तो धीरे-धीरे आपकी भावनाएं सही दिशा में आगे बढ़ने लगेंगी।
9. बस यही सही समय है आशाओं के बीज बोने का, आप अपने मन की भूमि पर जिस तरह के बीज बाएंगे, आपकी भावनाएं वैसी ही हो जाएंगी।
हमारी सबसे बड़ी ताकत अगर कुछ है तो वह है इच्छा शक्ति लेकिन हम इसे पहचानने में गलती कर देते हैं, तो उसकी सही पहचान करें। इच्छाशक्ति उन्हीं भावनाओं पर काम करती हैं, जिनका बीज हम अपने मन में बोते हैं।
आशा करता हूं इस पर्यावरण दिवस पर आप अपने मन में स्नेह का बीज जरूर रोपेंगे और आपके जीवन के पर्यावरण में फूलवारी आएगी ... आपका सुमित
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जवाब देंहटाएंपेड है तो हम है और हमारा आज भी सुरक्षित है और कल भी रहेगा और वो नही तो मानव भी सुरक्षित नही.....
मन को जरूरत है आशाओं के बीज की👌👍
जवाब देंहटाएं👌👌 very true
जवाब देंहटाएंBahot hi khub surat likha he
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