दिल और दिमाग की एक 'लय' है, तो सफलता 'तय' है
मेरा दिल करता है कि मैं यह काम करूं लेकिन मेरा दिमाग डिसिजन नहीं ले पा रहा, मैंने तो यह करने की ठान ली है लेकिन डर लग रहा है, अरे यार उस समय मैंने यह कर लिया होता तो आज मैं कहीं ओर होता… आपने अक्सर लोगों को यह कहते सुना होगा या फिर खुद भी अनुभव किया होगा। ऐसा क्यों होता है कि अक्सर हमारा दिल कुछ करना चाहता है लेकिन हम वह काम कर नहीं पाते। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिल और दिमाग की फ्रिक्वेंसी अलग-अलग है। अक्सर हमारे दिल की आवाज हमारे दिमाग की कसौटी पर खरी नहीं उतर पाती इसलिए हम कई काम नहीं कर पाते। जीवन में हमारी सफलता दिल व दिमाग के सामंजस्य पर निर्भर होती है, तो बस अपने दिल और दिमाग को एक लय पर ले आइये फिर जीत आपकी ही होगी।
आपने एक गाना सुना होगा 'दिल तो बच्चा है जी' यह बोल काफी हद तक वास्वकिता के करीब हैं, हमारे दिल की चाहत बिलकुल बच्चों की तरह होती हैं, जैसे बच्चों को नए-नए खिलौने चाहिए, उसी तरह हमें भी जीवन में नई-नई चीजें चाहिए लेकिन हमारा दिमाग व्यवहारिकता, संसाधन, भविष्य और अन्य आयामों पर चीजों को परखता है। कई बार हम सिर्फ दिल की सुनकर किसी निर्णय को जल्दबाजी में ले लेते हैं तो कई बार दिमाग की सुनकर वह काम ही छोड़ देते हैं लेकिन यह दोनों ही स्थितियां गलत हैं। हमें जरूरत है दिल और दिमाग को एक फ्रिक्वेंसी पर लाने की। तभी हम सफलता की सीढ़ी चढ़कर खुशियों के दरवाजे तक पहुंच सकते हैं।
हमारा दिल हमेशा दूसरों का आब्जर्वेशन करता रहता है। अगर कोई व्यक्ति खुशी है तो हमारा दिल यह तलाशने लगता है कि उसकी खुशियों का कारण क्या है। हम तुरंत उसके संसाधनों को देखने लगते हैं। हम अनुमान लगा लेते हैं कि वह बड़ी नौकरी में है इसलिए खुश है या वह नौकरी छोड़कर बिजनेस कर रहा है इसलिए खुश है या फिर उसके पास बड़ा मकान, लेटेस्ट गेजेट्स, काफी पैसा है इसलिए वह खुश है। यह सोच बिलकुल उस तरह की है जैसे कोई बच्चा दूसरे बच्चे के पास खिलौने देखकर यह समझता है कि इस खिलौने से उसे कितनी खुशी मिल रही होगी और यह खिलौना मुझे मिल जाए तो मैं भी खुश हो जाऊंगा लेकिन वास्तविकता में संसाधन किसी खुशी का मापदंड हैं ही नहीं। कई बार हम दूसरों की इन बातों को फॉलो करने के बाद भी दुखी ही होते हैं।
दिल और दिमाग को एक फ्रिक्वेंसी पर लाएं
- अब आप सोच रहे होंगे कि दिल और दिमाग को एक फ्रिक्वेंसी पर लाएं कैसे या फिर हमें कैसे पता चलेगा कि हमारे लिए क्या सही है तो उसके लिए आपको हर बड़े निर्णय से पहले खुद को थोड़ा समय देना होगा।
- दिल में कोई विचार आए जैसे नौकरी छोड़ना, पढ़ाई में कोर्स बदलना, बिजनेस करना, नई जगह या नए व्यवसाय को शुरू करना या और भी कुछ … तो 15 दिन के लिए रूक जाएं।
- पहले पांच दिन केवल दिल को वॉच करें कि क्या वास्तव में यह हमारे दिल का विचार था या फिर सिर्फ किसी को देखकर हम यह करना चाह रहे थे, अगर दिल से आवाज आए कि हां हम स्वयं यह करना चाहते हैं तो दूसरी स्टेज पर जाएं
- पांचवे से दसवें दिन तक सोचें कि इस काम को करने का बेस्ट तरीका क्या है हमें कौन से संसाधन लगेंगे, कौन से समझौते करना होंगे और कितना समय देना होगा। दसवें दिन अगर लगता है कि हां इन संसाधन, समझौते और समय के लिए मैं तैयार हूं तो हमें तीसरी स्टेज पर जाना चाहिए।
- 11वें से 15वें दिन तक सोचें कि अगर मैं असफल रहा तो क्या उस परिस्थिति के लिए मैं तैयार हूं, क्या में यह कहने के लिए तैयार हूं कि सही हुआ तो मैंने किया और गलत हुआ तो भी मैं जिम्मेदार हूं।
- अगर 15वें दिन तक आप इन स्टेज को पार कर लेते हैं तो समझ जाइये कि अब आपके दिल व दिमाग की एक लय है मतलब सफलता तय है । अब आपको इसे करके खुशी मिलेगी।
- जीवन में सबसे ऊपर यह है कि किसी काम को करके आपको मजा आना चाहिए। इसके बाद या तो सफलता मिलेगी या अनुभव। अगर आप दोनों के लिए तैयार हैं तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें