समर्पण और परवाह के धागे से बंधे हैं "प्रेम के सूत्र"



प्रेम क्या है.......... इसे सब अपने नजरिए से समझते हैं, कोई आकर्षण में खोकर उसे प्रेम मान लेता है तो कोई अपनी चाहत को पाने की इच्छा को प्रेम साबित करने में लगा रहता है। कोई कह सकता है कि जिसे वह चाहता है उसे पा लेना ही प्रेम है तो कोई अपने प्यार को ना पाने की स्थिति में उससे संबंध खत्म कर देने या खुद को दुनिया से दूर कर लेने वाले भाव को महान प्रेम बताता है लेकिन वास्तविकता में यह प्रेम नहीं है। प्रेम न तो किसी रंग-बिरंगे कागज में लिपटा उपहार है न ही किसी गुलदस्ते में महकता फूल। प्रेम के सूत्र तो समर्पण और परवाह के धागे में बंधे होते हैं। जो इस धागे में बंध गया समझो प्रेम का ढाई आखर समझ गया।

प्रेम को गहराई से समझने के लिए हमें देखना होगा कि क्या हम जिसे चाहते हैं बस उसे पा लेने तक ही हमारा प्रेम सिमित है, अगर ऐसा है तो यह प्रेम नहीं 'मोह' है और यकीन मानिए अपनी चाहत को पाने के कुछ समय बाद ही यह 'मोह' खत्म हो जाएगा। प्रेम तो वह है जो अपने प्यार की खुशियों को चाहे, फिर भले ही वह उसके साथ हों या उससे दूर। कई बार एक-दूसरे से अलग होना भी प्रेम है तो कई बार दोंनों का एक हो जाना प्रेम है। प्रेम का कोई मापदंड नहीं है लेकिन बिना किसी दबाव या प्रयास के भाव, वाणी या विचार का वह कर्म जो अपने प्रेमी की खुशी चाहे और उस खुशी को देखकर खुद प्रसन्न हो जाए, वह प्रेम जरूर है।



समर्पण और परवाह के कई माध्यम हैं उसकी खुशी में प्रसन्न होना, उसकी पसंद का ख्याल रखना, उसकी बात ध्यान से सुनना, उसकी समस्या का हल निकालना, अपने ज्ञान व अनुभव से उसका मार्गदर्शन करना, उसके आराम का ध्यान रखना और मुश्किल समय में हमेशा उसके साथ खड़े रहना ही प्यार है। प्रेम किसी से सुख पाने का नहीं बल्कि किसी को सुख देने का नाम है।

प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है और बंधनों से मुक्ति भी है, यदि कोई आपके प्रेम को नहीं समझ रहा तो उदास न हों, छल या बल से उसे पाने का प्रयास भी न करें, बल्कि उसे स्वतंत्र छोड़ दें क्योंकि स्वतंत्रता मनुष्य का सबसे प्रिय भाव है और आप उसे निस्वार्थ भाव से प्रेम करते रहें, यकीन मानिए आपकी भावनाएं उसी प्रेम के साथ आपकी ओर लौटकर आएंगी।



जहां कोशिश होती है वहां प्यार नहीं होता। प्यार के सूत्र तो अपने आप बंधते हैं, अगर मैं उसकी आंखों में खुद को देख सकता हूं तो यह प्यार है लेकिन यह इतना आसान नहीं क्योंकि जब मैं खुद को उसकी आंखों में देख रहा हूं तो मैं का अस्तित्व खत्म हो गया। इसी तरह मुझमें खोकर वो का अस्तित्व भी खत्म हो गयाअब न वो है न मैं हूं, बस प्रेम है लेकिन इस प्रेम के लिए मन का विस्तार जरूरी है, याद रखिए मन से व्यापार हटा दें, तभी प्यार मिलेगा।



प्रेम परमात्मा की सबसे सुंदर कृति है लेकिन अक्सर जब भी हम प्रेम की बात करते हैं तो हमारी मानसिकता संकुचित हो जाती है। हम प्रेम के नाम पर एक नायक-नायिका की छवि बना लेते हैं और उन्हीं के रिश्तों के इर्द-गिर्द प्रेम को परिभाषित करते हैं, जबकि प्रेम किसी से हो सकता है परिवार से, माता-पिता से, जीवन साथी से, संतान से, दोस्तों से, देश व मातृभूमि से, कला से, खेल से, मानवता से या फिर प्रकृति से बस एक बात ध्यान रखें कि प्रेम के सूत्र में बंधना जरूरी है। जब तक हम माता-पिता का आभार, जीवनसाथी की सुरक्षा, संतान के संस्कार, देश की रक्षा, दोस्तों की मदद, खेल व कला में लगन और प्रकृति का संरक्षण जैसे कर्तव्यों को पूरा नहीं करेंगे, तब तक हमें वास्तविक प्रेम नहीं मिलेगा, क्योंकि प्रेम के अमृतपान के लिए कर्तव्य के पात्र जरूरी हैं।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर शानदार प्रेम पर आपने बात लिखी है यकीनन प्यार दुनिया में एक ऐसी चीज है जिसे दिखावा या दर्शाया नहीं जा सकता यह अंतरात्मा से हो जाता है जो जो भी व्यक्ति हो उसे वह प्रेम आपके स्वभाव से आपके आचरण से स्वयं ही आपसे आकर्षित हो जाता है

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर आज के दिन प्रेम की सही अर्थों में व्याख्या करने के लिए बहुत बधाई।जहां बिना स्वार्थ के कार्य हो वही सच्चा प्रेम होता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. समर्पण का नाम ही प्रेम है, सरल शब्दों में समझाया हैं 🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है जो अदृश्य होकर भी हमें एक दूसरे से जोड़ता है,

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं

जीवन में ऐसे काम करो कि ''खुद से नजर मिला सको''

जीवन का प्रबंधन सीखाता है श्रीराम का चरित्र