हमारा मुकाबला सिर्फ खुद से है

 

 

 


आपने अक्सर लोगों को बोलते हुए सुना होगा जिंदगी एक जंग है आप भी शायद यही मानते होंगे और जीवन को जंग का मैदान समझकर ही जीते होंगे। आप जो भी हों विघार्थी  खिलाड़ी, नौकरीपेशा, व्यापारी, गृहणी या किसी अन्य पेशे से जुड़े हुए व्यक्ति। आप को अपने साथ कार्य करने वाला व्यक्ति आपका प्रतिद्वंदी लगता होगा। प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में हम किसी भी बात को समझने के बजाए बस भागते चले जाते हैं लेकिन एक छोटी सी बात हमें समझ ही नहीं आती कि हमारा मुकाबला किसी और से नहीं बल्कि खुद से ही है।

अब आप सोच रहे होंगे कि खुद से भला कैसा मुकाबला। मैं बताता हूं, जरा अपने जीवन को फ्लैशबैक में ले जाएं। बचपन से अपने जीवन को फिर से देखें। जब आप प्रायमरी या मिडिल स्कूल में थे तब आपके कुछ सहपाठी रहे होंगे, तब कक्षा में अव्वल आने को लेकर या अधिक नंबर हासिल करने को लेकर आप उनसे कड़ा मुकाबला रखते होंगे। फिर दूसरी कड़ी में हम चलते हैं हाईस्कूल हायरसेकंडरी में। इस दौरान आपने प्रतिस्पर्धा और तगड़ी कर दी होगी। कक्षा में सबसे आगे निकलने के साथ डॉक्‍टर, इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने के लिए परीक्षाएं देना और स्कूल की अन्‍य गतिविधियों में भी स्पर्धा में आपने कोई कसर नहीं छोड़ी होगी। इसी तरह तीसरी कड़ी में कॉलेज, चौथी कड़ी में नौकरी और पांचवी कड़ी में जीवन के अन्य पहलुओं की प्रतिस्पर्धा।



वाकई जीवन को पूरी तरह जंग मानते हुए आप आगे बढ़ रहे होंगे लेकिन जरा ठहरिए, जीवन के इस फ्लैशबैक में एक गौर करने वाली बात आपको बताता हूं। अपने जीवन की इन कड़ियों को अलग-अलग करके देखिए प्रायमरी-मिडिल में आप जिन सहपाठियों से प्रतिस्पर्धा रख रहे थे उनमें से अधिकांश शायद हाईस्कूल में आपके साथ हों, जो हाईस्कूल में थे वे कॉलेज में नहीं हों और जो कॉलेज में थे वे नौकरी या कारोबार में आते-आते बदल गए होंगे। अब जरा सोचिए हमारे सारे प्रतिद्वंदी बदलते गए तो मुकाबला किससे था। अब प्रतिस्पर्धा के एक बिंदू पर नजर डालिए वह हैं हम खुद। प्रतिद्वंदी बदलते गए लेकिन हम नहीं, मतलब हमारा असली मुकाबला तो खुद से है।

खुद से मुकाबले का मतलब है कि किसी और से प्रतिस्पर्धा के बजाए हम खुद का आकलन करें। जैसे कक्षा आठवीं में हमने जितने अंक हासिल किए नौवीं कक्षा में उससे अधिक अंक लाने का प्रयास, किसी मैच में जितने रन बनाए या गोल किए, अगले मैच में उससे अधिक करने का प्रयास, अगर आप टागेट बेस्ट जॉब में हैं तो पिछले वित्तीय वर्ष से अधिक टारगेट हासिल करने का प्रयास और शिक्षक, गृहणी या सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो स्‍कूल, घर समाज को अधिक समय सेवा देने का प्रयास। ऐसी प्रतिस्पर्धा से जहां हम खुद का आकलन कर स्वयं को बेहतर बना सकेंगे, वहीं अंधी प्रतिस्पर्धा में खुद को झौंककर मानवीयता से दूर होने का खतरा भी टल जाएगा।



थ्री इडियट्स फिल्म का एक डायलॉग है कि दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है लेकिन दोस्त फर्स्‍ट जाए तो ज्यादा दुख होता है यह बात हम सबके जीवन पर भी सटिक बैठती है हमने प्रतिस्पर्धा के बीच संबंधों को ताक पर रख दिया है और केवल खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने में लगे हैं। ऐसे में हम यह आकलन तो कर ही नहीं पाते कि हम स्वयं कहां थे और कहां पहुंच गए हैं या पहुंच रहे हैं। हम कभी नहीं सोचते कि हमारी कौन सी कमियां हैं जो हमें दूर करना है, हम कैसे खुद को बेहतर बना सकते हैं, अगले मुकाबले से पहले अपनी किन कमियों को दूर कर सकते हैं। हम सिर्फ सोचते हैं कि अपने किसी सहकर्मी या सहपाठी से प्रतिस्पर्धा कर उससे आगे कैसे निकलना है या उसे पीछे कैसे धकेलना है। इससे हमारा दायरा छोटा होता चला जाता है और क्षणिक सफलता के चक्कर में हम वास्तिविक लक्ष्य से भटक जाते हैं। हमारा वास्तविक लक्ष्य होना चाहिए स्वयं को परिपूर्ण करना मौजूदा समय में किए गए कार्य का आकलन कर भविष्य में होने वाले कार्य में सुधार करना, अगर हमें अपने कार्य में कोई कमी नजर आती है या प्रयासों में कोई चूक होती दिखती है तो हमें इसका संशोधन करना चाहिए। जिससे हम किसी भी मुकाबले में चले जाएं, हमारे प्रतिद्वंदी बदल जाएं लेकिन हम सफलता हासिल जरूर करेंगे क्यों कि हम खुद में सुधार करते चले जाएंगे।



यकीन मानिए अगर आप स्वयं से प्रतिस्पर्धा करेंगे तो बेहतर ढंग से योजना भी बना पाएंगे और इसे क्रियान्वित भी कर पाएंगे क्यों कि आप अपने पिछले परिणाम को बेहतर करने में जुटेंगे और अपनी कमियों तो दूर कर निखरे रूप में आगे बढ़ेंगे। याद रखिए सफलता हमेशा अपनी लाइन को बड़ी करने से मिलती है किसी और की लाइन छोटी होने से नहीं।

टिप्पणियाँ

  1. सफलता हमेशा अपनी लाइन को बड़ी करने से मिलती है किसी और की लाइन छोटी होने से नहीं।👍

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  2. बहुत बढ़िया सुमित भाई, लिखने का क्रम बनाए रखना

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  3. शानदार सुमित भईया✍️✍️👍💪

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  4. ज्ञानवर्धक, लेख पढ़कर वास्तविकता की ओर ध्यान केंद्रित हो जाता है।👌👏

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  5. यह नव वर्ष में एक अच्छा ज्ञानवर्धक लेख जो हमारे लिए बहुत उपयोगी है

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  6. बहुत ही शानदार, नववर्ष शुभ और मंगलमय हो, बहुत बहुत शुभकामनाएं 💐💐💐💐

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  7. सारगर्भित और सटीक आज के समय के सबसे गंभीर और चिंतनीय विषय में से एक यह भी हैं क्योंकि आज कल ये देखने में आ रहा है कि इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में ये समाज मानवीयता खोता जा रहा हैं और अपने घर में जानवर पालकर उससे तो बेहद प्यार से व्यवहार कर रहा है किन्तु इँसान इँसान का ही दुश्मन बनता जा रहा है और उसे नुक्सान पहुचाने के लिए बड़े से बड़ा क्राईम भी आसानी से कर जाता है

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  8. सटीक एवम् वास्तविक जीवन से संबंधित रोचक जानकारी ।आप के विचार भावी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करेगी।

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  9. वाकई सुमित जी जीवन में शायद हम इस भावना को समझ ही नहीं पाते कि जिस अंधी प्रतिस्पर्धा के हम हिस्सा हैं वह हमें लक्ष्य तक नहीं ले जा रही वास्तविकता तो यह है कि हमें अपने भूतकाल से अनुभव लेकर वर्तमान को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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  10. खुद का मुकाबला खुद से
    वाह !!!बहुत अच्छी बात कही है

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