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मैं बीते वक्त में जाना चाहता हूं

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कभी-कभी जीवन हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है, जहां हम सही होते हुए भी कटघरे में खड़े कर दिए जाते हैं। जहां सच हमारे साथ होता है, लेकिन सवाल हमसे पूछे जाते हैं। जिन रिश्तों को हमने प्रेम, स्नेह और विश्वास से सींचा होता है, वही रिश्ते एक दिन हमारे इरादों पर शक करने लगते हैं। तब मन अनायास ही पीछे की ओर भागता है। लगता है काश, बीते वक्त में लौट पाते और खुद से कह पाते—संभल जाओ, भविष्य हमारे साथ ऐसा कर सकता है। ऐसे समय में मन में एक ही वाक्य गूंजता है— मैं बीते वक्त में जाना चाहता हूं। भूतकाल को बदलने के लिए नहीं, बल्कि वहां खड़े होकर खुद से मिलने के लिए। जब सोच और गहरी होती है, तो यह सवाल उभरता है कि जहां हम सही थे, वहां भी हम किसी को समझा क्यों नहीं पाए? शायद इसलिए कि कुछ लोग सच समझना चाहते ही नहीं। दुनिया तब बड़ी सहजता से कह देती है— जो बीत गई, सो बात गई। लेकिन सच्चाई यह है कि घटनाएं बीत जाती हैं, लोग दूर हो जाते हैं, शब्द खो जाते हैं… पर जो भावना आहत हुई होती है, जो फांस मन में चुभ जाती है, वह रह जाती है। वही फांस, जो हर आत्मसंवाद में फिर से चुभती है। हममें से कई लोग अपनी खुशियों क...