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यह सिर्फ धागा नहीं, जीवन भर का सबसे मजबूत सहारा है

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लाइफ का बैकअप है स्नेह का यह बंधन “मेरा स्नेह और मेरी दुआएं सदा तेरे संग रहें, मैं तेरी खुशियों को अपनी हर सांस से सजाता रहूँ।” यादों की किताब का सबसे खूबसूरत पन्ना वही होता है, जिसमें भाई-बहन की तस्वीर हो। उसमें शरारतें भी होती हैं और एक-दूसरे की ढाल बनने का वादा भी। माँ अगर हमारी पहली गुरु है, तो भाई-बहन हमारे पहले और सबसे सच्चे दोस्त हैं। वो बहन, जो पापा की डांट से पहले भाई को बचा ले, और भाई, जो बहन की हर उलझन बिना कहे सुलझा दे। जब बहन मुस्कुराती है, तो भाई का दिन रोशन हो जाता है; और जब बहन की आँख में आँसू आता है, तो भाई दुनिया से लड़कर भी उसे हँसाने की वजह ढूंढ लाता है। स्नेह के इन धागों से बुना यह रिश्ता हमारी ज़िंदगी का अटूट विश्वास है, हर मुश्किल में चुपचाप साथ खड़ा रहने वाला सहारा। जरूरी है कि हम एक-दूसरे की खुशियों पर दिल खोलकर झूमें और ग़म का साया पड़ते ही सबसे पहले गले लगाने पहुंचें। तभी यह बंधन स्नेह, विश्वास और सुरक्षा का सच्चा प्रतीक बनता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास आलीशान मकान, अच्छी सैलरी और हजारों सोशल मीडिया फॉलोअर्स हो सकते हैं, लेकिन जब दिल भारी...

आपकी नौकरी सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं, बल्कि आपकी पहचान है

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  शिद्दत से किया हर काम बढ़ाएगा जीवन में आगे  जीवन में आप भले नौकरी कर रहे हों या व्यवसाय। अपने काम को केवल आजीविका का साधन मत समझिये। जब काम पर जाएं तो ऐसे समझिये कि मंदिर जा रहे हों। आपकी नौकरी या व्यवसाय सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं बल्कि आपकी पहचान है। अपने काम को जुनून बनाइए। आपकी कार्य-नैतिकता ऐसी हो जो मिसाल कायम करे। हमेशा अपने काम को बेहतर से बेहतरीन करने की ललक हो और साथ ही सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने की नेतृत्व क्षमता भी। यही वो रास्ता है जहाँ आप स्वयं भी चमकेंगे और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनेंगे। कई बार मैंने लोगों को बोलते सुना है कि जितना पैसा मिलता है उतना काम करना चाहिये लेकिन यह दुनिया की सबसे खतरनाक और पतन की ओर ले जाने वाली लाइन है। मैं अपने करियर में 15 साल के अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि पैसा हमेशा सेकंडरी होना चाहिए। आप जो काम कर रहे हैं, जितना पैसा आपको मिल रहा है, उससे ज़्यादा वैल्यू कॉन्ट्रिब्यूट करने की कोशिश कीजिए। अगर आपकी तनख्वाह ₹50,000 है, तो ₹5 लाख का काम करके दिखाइए। मेरा भरोसा कीजिए, एक दिन आपकी तनख्वाह ₹5 लाख हो जाएगी। और जिस दिन वह ₹5 ल...

सबको संभालने वालों को संभालने वाले नहीं मिलते

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सुमित अवस्थी बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि एक अच्छा इंसान बनें। हम में से कई इस सीख को जीवन का ध्येय बना लेते हैं। हम कोशिश करते हैं कि इंसानियत की हर खूबी अपने भीतर समेट लें, दूसरों के काम आएं, ज़रूरतमंदों की मदद करें और हर किसी की मदद के लिये उपलब्ध रहें। हम दूसरों को संभालते हैं, सहारा देते हैं, और सोचते हैं कि जीवन ऐसे ही चलता रहेगा। लेकिन, कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है, जहाँ हम खुद को अकेला पाते हैं। तब मन में कई सवाल उठते हैं: जो सबको संभालते हैं, उन्हें संभालने वाला कोई क्यों नहीं मिलते? जो हर किसी के सपनों को संवारते हैं, वे खुद तन्हा क्यों रह जाते हैं? और जो सबके आंसू पोंछने चलते हैं, उन्हें कभी अपने लिए सहारा क्यों नहीं मिलता? ऐसे में कई बार टूटने के बाद वह अपना बैग उठाकर किसी अनजान राह की तरफ आगे बढ़ जाते हैं। आपने शायद यह अनुभव किया होगा कि जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अक्सर दूसरों को प्यार देने की कोशिश करते हैं। उनके मन में एक उम्मीद होती है कि उन्हें भी वही मदद और सहयोग वापस मिलेगा। लेकिन जब ऐसा नहीं होता, तो वे बस यही सोचते रह जाते हैं कि ऐसा क्यों हुआ...

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...

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ज़िंदगी... यह शब्द मात्र एक शब्द नहीं , बल्कि एक अनंत गहराई है , जहाँ भावनाएँ उमड़ती-घुमड़ती हैं , कभी खुशी की लहरें , तो कभी गम के तूफ़ान। यह ज़िंदगी हमें हर पल कुछ नया सिखाती है , पर क्या हम इसके सबक समझ पाते हैं ? क्या हम इसका साथ निभा पाते हैं , या बस उम्मीदों के झूले पर झूलते रहते हैं , और जब वे टूटते हैं , तो ज़िंदगी को कोसने लगते हैं ? 1961 में आई फिल्म ' हम दोनों ' का वह अमर गीत याद आता है – "मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया..." साहिर लुधियानवी के शब्दों में रची , मोहम्मद रफी की आवाज़ में सजी और देवानंद की अदाकारी से निखरी यह रचना सिर्फ एक गीत नहीं , बल्कि जीवन का सार है। यह हमें सिखाता है कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर उसके साथ चलना कितना ज़रूरी है , चाहे रास्ते में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं। हम अक्सर ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव में उलझ जाते हैं। रिश्तों की उलझनें , जिम्मेदारियों का बोझ और हालात की मार हमें अंदर तक तोड़ देती है। हम दूसरों से उम्मीदों का पहाड़ खड़ा कर लेते हैं , और जब वे उम्मीदें टूटती हैं , तो दिल में सिर्फ़ तन्हाई और खालीपन रह जाता है। पर क्...

मेरे जीवन का सबसे बड़ा तोहफा: "आप"

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  थैंक्सगिविंग डे: आपकी मौजूदगी मेरे जीवन को पूरा करती है... (आपका सुमित) आपका साथ मेरे जीवन का सबसे कीमती तोहफा हैं। आपकी बातें मुझे हमेशा नई ऊंचाइयों पर ले जाती हैं। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने आपको मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया, साथ ही आपका भी धन्यवाद कि आप मेरे जीवन में हैं। आपकी बातें और यादें मुझे हमेशा प्रेरित करती हैं। आप सोच रहे होंगे कि मैं आज आपसे ऐसा क्यों बोल रहा हूँ, दरअसल आज वर्ल्ड थैंक्सगिविंग डे है। मैं अपने जीवन के महत्वपूर्ण अंग यानी कि "आप" को मेरे जीवन का हिस्सा होने के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूं। थैंक्सगिविंग डे पर मैं आपको दिल से धन्यवाद कहना चाहता हूँ कि आप मेरे साथ हैं। विश्व थैंक्सगिविंग डे - यह वह दिन है जब हम सभी को अपने जीवन में मिली सभी खुशियों और सफलताओं के लिए आभार व्यक्त करना चाहिए। हम सभी को अपने जीवन में कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने हमें आगे बढ़ने में मदद की है, जिन्होंने हमें प्रेरित किया है और जिन्होंने हमारे जीवन को बेहतर बनाया है। आज हम उन सभी का धन्यवाद करें। ईश्वर का धन्यवाद सबसे पहले तो हमें उस परम शक्ति का ...

जीवन का प्रबंधन सीखाता है श्रीराम का चरित्र

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श्रीराम के चरित्र की व्याख्या करना किसी मुख के लिए और लिखना किसी कलम के लिए संभव नहीं है। उनके चरित्र की व्याख्या अपार है जिसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। श्रीराम के चरित्र एवं उनके जीवन के आदर्शों के माध्यम से हम अपने अपने जीवन का प्रबंधन सीख सकते हैं। हममें से अधिकांश लोग राम को मानते हैं लेकिन राम की नहीं मानते, जिस दिन हमने राम की मान ली तो जीवन में कोई कष्ट रह ही नहीं जाएगा। वास्तव में श्रीराम ने अपने जीवन में मनुष्य से देवतत्व तक की यात्रा को न केवल तय किया है बल्कि चरित्र के सर्वश्रेष्ठ स्तर को हासिल करने का उदाहरण भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने जीवन में हर स्थिति और व्यक्ति के साथ सर्वश्रेष्ठ संबंध निभाकर जीवन का प्रबंधन भी समझाया है और समाज के अंतिम तबके को अपने साथ जोड़कर समाजवाद को भी परिभाषित किया है।  बालपन में ही अपने भाईयों के प्रति स्नेह हो या गुरू के आश्रम पहुंचकर शिक्षा ग्रहण करना, बात पिता के वचन को निभाने की हो या सखाओं से मित्रता निभाने की, देश में छूपे आक्रंताओं को मारना हो या मर्यादा को प्रस्तुत करना हर जगह श्रीराम ने अपने कर्मों से मनुष्य को जीवन का प्रबंधन...

तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं

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साल  1983  में एक फिल्म आई थी मासूम। इस फिल्म में गुलजार साहब का लिखा एक बहुत ही मशहूर गाना है   ‘‘तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूं मैं’’   जीवन के उतार-चढ़ाव ,  गम ,  दर्द और समझौतों को बयां करता यह गीत आज के जीवन पर भी उतना ही सामयिक नजर आता है। हम सभी कहीं न कहीं जिंदगी के सवालों से परेशान हैं। अगर गहराई में जाकर सोचें तो हमें नजर आएगा कि इस तनाव का कारण है हमारी उम्मीदें। आपने लोगों को अक्सर बोलते सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि मैंने उसके लिए कितना कुछ किया लेकिन उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार किया ,  मेरी जरूरत के समय वह मेरे साथ नहीं था या मैंने हमेशा उसे प्राथमिकता दी लेकिन उसकी जिंदगी में मेरी इंर्पोटेंस नहीं है।   चिंता ,  शंका ,  भय ,  अहंकार ,  स्वार्थ और पूर्वाग्रह जैसी भावनाओं के कारण हमारे जीवन में तनाव बढ़ रहा है और इस तनाव का सबसे   बड़ा   कारण है लोगों का हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना।   असल में हम अपने परिवार ,  दोस्त ,  प्रेमी ,  रिश्तेदार ,  बॉस ,  ऑफिस   के सहकर...