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सबको संभालने वालों को संभालने वाले नहीं मिलते

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सुमित अवस्थी बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि एक अच्छा इंसान बनें। हम में से कई इस सीख को जीवन का ध्येय बना लेते हैं। हम कोशिश करते हैं कि इंसानियत की हर खूबी अपने भीतर समेट लें, दूसरों के काम आएं, ज़रूरतमंदों की मदद करें और हर किसी की मदद के लिये उपलब्ध रहें। हम दूसरों को संभालते हैं, सहारा देते हैं, और सोचते हैं कि जीवन ऐसे ही चलता रहेगा। लेकिन, कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है, जहाँ हम खुद को अकेला पाते हैं। तब मन में कई सवाल उठते हैं: जो सबको संभालते हैं, उन्हें संभालने वाला कोई क्यों नहीं मिलते? जो हर किसी के सपनों को संवारते हैं, वे खुद तन्हा क्यों रह जाते हैं? और जो सबके आंसू पोंछने चलते हैं, उन्हें कभी अपने लिए सहारा क्यों नहीं मिलता? ऐसे में कई बार टूटने के बाद वह अपना बैग उठाकर किसी अनजान राह की तरफ आगे बढ़ जाते हैं। आपने शायद यह अनुभव किया होगा कि जिन्हें प्यार नहीं मिलता, वे अक्सर दूसरों को प्यार देने की कोशिश करते हैं। उनके मन में एक उम्मीद होती है कि उन्हें भी वही मदद और सहयोग वापस मिलेगा। लेकिन जब ऐसा नहीं होता, तो वे बस यही सोचते रह जाते हैं कि ऐसा क्यों हुआ...